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भीषण भाषण का वाममार्गी तांत्रिक अनुष्ठान बिना पंच मकार के संभव नहीं। ये पंच मकार हैं मुंह, माइक, माला, मंच, मैदान। ये पंच मकार जिस साइज के होंगे उसी साइज का भाषण होगा। यानी उतना ही भीषण होगा भाषण जितना बड़ा मैदान, जितना बड़ा मुंह (ओहदा), जितना ज्यादा माला, जितना भारी मंच, माइक तो होता ही है, क्योंकि गले पर जोर डालन की अपन की आदत नहीं।
वाममार्गी अनुष्ठान हां भाई अब आप कहेंगे कि राजनीति से इसका क्या ताल्लुक? वैसे यह सवाल नाजायज है, फिर भी इसका जायज जवाब देना जरूरी है। अरे भाई यह वैसे तो कोई तांत्रिक कभी-कभार ऐसे अनुष्ठान करता है, जबकि राजनेता तो रोज ही कोई न कोई तंत्र क्रिया करते हैं। कभी मोहन, तो कभी उच्चाटन, जरूरत पड़ी तो मारण (यहां राजनैतिक रूप से हत्या से तात्पर्य लें), स्तंभन तो खास तौर से प्रयोग होता रहता है। सत्ता में आ गये तो जो जहां है वहीं टिका रहे, हिलजुल हुई नहीं कि सत्ता का बैलेंस बिगड़ा। क्योंकि अच्छे-अच्छों की कुर्सी हिल रही है।
भइया जी हमें भी यह मंच जम गया है। मंच बड़ा है। भाषण भी बड़ा होगा।
भाषण बजट पर होगा। दीदी नाराज हैं, दादा खुश। बंगाल में सत्ता का संतुलन बिगड़ रहा है। लाल झंडे वाले तो चाह रहे हैं, कब उच्चाटन हो दीदी और दादा में, ताकि वे जमे रहे सत्ता में। बंगाल का काला जादू बिना सिंदूरी लाली के भला कहां शोभा देगा। आप ही बतायें। विपक्ष एकजुट हो रहा, यानी शेर-बकरी एक घाट पर पानी पीने को तैयार हैं।
दिल्ली में खूंटा गाड़ने वाला पंजा अपनी ताकत अंदाज रहा है, रस्साकसी के इस खेल में पंजे की पकड़ कितनी मजबूती है, इसे तौला जा रहा है।
पेट्रोल-डीजल में लगी आग किसे-कैसे झुलसायेगी इस पर अगला भाषण जारी होगा, शीघ्र, तब तक गुझिया खायें, पापड़ खायें। जिसने गर्म-गर्म न गुझिया न खायी, उसका जीवन अकारथ है, तो जन्म स्वार्थ करें। रंग लगायें। गुलाल लगायें। होली के रंगभरे सबके जीवन में। न नशे में आयें, न किसी को जो प्रेम से मान जाये, उसे रंग लगायें. जोर-जबरदस्ती और भदेसपन से बचें, बचायें।
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