Menu
blogid : 549 postid : 7

हुसैन की हसरत

अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति
  • 17 Posts
  • 35 Comments

मकबूल फिदा हुसैन। बड़े चित्रकार। फिल्म भी बनायी। पेंटिंग भी की। उनका शगल है चर्चा में रहना। वे निश्चित रूप से बड़े चित्रकार हैं। चित्र बनाते हैं। उनकी चर्चा फिर है क्योंकि उन्होंने एक खाड़ी देश की नागरिकता ले ली है। हर व्यक्ति इस बात के लिए स्वतंत्र है, चाहे जहां रहे। अब वे उस खाड़ी देश में रहेंगे। हिन्दुस्तान आने का मौका मिलेगा और यहां के बहुसंख्यक हिन्दुओं को चिढ़ाने का मौका मिलेगा तो वे जरूर आयेंगे। ऐसा संकेत वे दे चुके हैं। गलती की है, गलती मानेंगे नहीं। वैसे जब यह विवाद ताजा था वे इस बात का तर्क पहले पेश कर चुके हैं कि उन्होंने मां सरस्वती का जो चित्रांकन किया था, वह तो शास्त्रीय है। उनके इस तर्क की हिमायत भी कई लोगों ने की। वे सभी लोग ऐसे थे जो हिन्दु परिवारों में पैदा तो हुए थे, लेकिन धर्म से उनका कोई वास्ता नहीं था और न ही धर्मशास्त्र से उनका कोई वास्ता था। वे एक विदेशी आर्थिक दर्शन को मामने वाले हैं, जो केवल ओनरशिप के झगड़े का विवेचन भर है। वैसे-वैसे उस दर्शन को पढ़ने के बाद भी वे पूरे मामले को नहीं समझ पाये, अपनी-अपनी व्याख्या करते रहे, वैसे ही उन्हें भारतीय दर्शन और धर्म का ज्ञान समझने का दावा किया। अपनी व्याख्या पेश कर दी।
जिस मां सरस्वती के स्वरूप के वर्णन के आधार पर इस महान चित्रकार ने इस चित्र की सर्जना की है, उसे केवल अपनी सुविधा और मानसिकता (माधुरी दीक्षित की सांड़ के साथ जैसी पेंटिंग इन बुजुर्गवार ने बनाई थी, उससे इसका अंदाजा लागया जा सकता है कि उनकी मानसिकता क्या है? यह पेंटिंग एक पत्रिका की साहित्यिक वार्षिकी में छपी भी थी। एक विवादित साहित्यिक पत्रिका ने मां सरस्वती की वह पेंटिंग छापने की भी हिमाकत की थी। ये वे लोग हैं जो अपनी मां का वर्णन करना हो तो पारंपिरक हो जाते हैं और दूसरे की इज्जत उतारनी हो तो फ्रायड के उस कुत्सित दर्शन का सराहा ले लेते हैं, जिसमें रिश्तों की प्रगाढता को यौनाकर्षण से जोड़ा गया है। जो मन को पढ़ने का विज्ञान कम पश्चिमी में रिश्तों-नातों की अहमियत को नष्ट करने करने के हथियार के रूप में ज्यादा प्रयोग हुआ है। खैर जरा हुसैन साहब की खैर-खबर लें। जरा उनसे पूछे कि क्या उन्हें सरस्वती की साधना की प्रक्रिया पता है। साधना के समय का निर्धारण उनकी जानकारी में है? क्या वे भारतीय हिन्दू धर्म के शाक्त मत के बारे में थोड़ा भी जानते हैं? सरस्वती की परम साधना श्री विद्या के कखग से वे परिचित हैं?
वे और उनके हिमायती कहेंगे कि उन्होंने ऐसा पढ़ा था, या पढ़ा है।
मकबूल साहब ने अपनी मां का चित्र भी बनाया है। पूरे कपड़े में, पूरे अदब के साथ। इस बारे में उनका तर्क रहा है कि अपनी मां को उन्होंने ऐसे ही देखा है। तो जैसे देखा, वैसा बनाया। जब देख हुआ बनाया, तो क्या वे भगवती के ऐसे उपासक हैं, जिन्हें मां सरस्वती के साक्षात दर्शन हो गये और उन्होंने जैसा देखा, वैसा बना दिया। पढ़ा हुआ बनाना है तो उन्हें पता ही होगा कि उनका जन्म कैसे हुआ? फिर अपने अवतार की कथा का चित्रण कर डालें। उठायें कूंची और चलायें हाथ। पैगंबर साहब के बारे में भी बहुत कुछ लिखा है, उसे भी चित्रित कर दें।
(वैसे शाक्त मत मत के बारे में जो मेरा अल्पज्ञान है. उससे मैं इन बुजुर्गवार को अवगत कराना चाहूंगा, क्योंकि मेरा अल्पज्ञान मेरे गुरु श्री पीतांबरा पीठाधीश्वर स्वामी जी महाराजा के अनन्य शिष्य सिद्ध साधक श्री विद्या के उपासक व श्री शक्तिपीठ, मुबारकगंज फैजाबाद के संस्थापक पं. रामकृष्ण पांडेय आमिल से मिली जानकारी पर आधारित है। यह भी बता दूं कि वे कोई पुरातनपंथी नहीं बल्कि समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया से जुड़े हुए थे।)
इसलिए देवियों की उपासना का समय निशाकाल (प्रायः मध्य रात्रि) और स्थान निर्जन निर्धारित है। उपासना एकांतिक होती है, सामूहिक नहीं। देवी को मां का दर्जा और उनसे प्राप्त सिद्धि को पुत्री का स्थान दिया गया है। सभी देवियों को मां ही कहा जाता है। किसी ने आज तक देवी उपासना इससे इतर स्वरूप में नहीं की। हमारे सिद्ध साधकों ने देवियों के मंदिर निर्जन स्थानों, जंगलों, गिरि-कंदराओं में बनाये, जहां आम आदमी का पहुंचना सरल नहीं था। शहर में नहीं बनाया, बीच चौराहे पर नहीं बनाया। साधक को देवियों के उन ध्यानों की जानकारी तभी करायी जाती है, जब वह परिपक्व हो जाता है। इसलिए इस ज्ञान को गुप्त रखा गया और रोज ओम जै जगदीश हरे की आरती की तरह आम नहीं किया गया। एक साधक पुत्रवत मां से वरदान की आकांक्षा, उसकी कृपा की चाह में उसकी साधना करता है। मोक्ष के लिए आराधना करता है, उसका ध्यान करता है, पूजा करता है, धंधा करने के लिए नहीं।
मां सरस्वती करोड़ों हिन्दुओं की आराध्य हैं। वे हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार जगत जननी हैं। इसलिए हुसैन का कृत्य हिन्दुओं की भावना को आहत करने वाला है। उन्हें भारतीय कानून ने आज तक सजा नहीं दी, यह हमारी कमजोरी है। कोई भी हुसैन धंधा करे, हमारी इज्जत उतारता फिरे और फिर यह भी कहे कि हमें सम्मान आने दें, तो हम आ जायेंगे। केरल सरकार उन्हें सम्मान कैसे देगी यह केरल सरकार तय करे। यानी एक तो चोरी उपर से सीना जोरी।
हुसैन के इस कृत्य को धार्मिक भावना भड़काने वाला क्यों न माना जाये। मां सरस्वती करोड़ों हिन्दुओं की पूज्य मां हैं। क्या किसी को यह छूट हासिल होनी चाहिये कि वह किसी की मां का नग्न चित्रण करे? जब किसी को नहीं तो हुसैन को यह छूट क्यों?
उन पर इसी आधार पर भारतीय संविधान के तहत ही मुकदमा चले, और सजा हो।
हमारे हाईस्कूल के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में प्रोज (गद्य) की पुस्तक में एक पाठ था रूल्स आफ दी रोड, जिसमें एक ऐसे व्यक्ति की लघु कथा लिखी गई थी कि वह सड़क पर छड़ी घुमाते हुए चल रहा था। जब उसे किसी ने टोका तो उसने कहा कि वह स्वतंत्र है, चाहे जैसे चले। तो उसे बताया गया कि आपकी स्वतंत्रता वहीं समाप्त हो जाती है, जहां आपकी नाक। यह छोटा सबक है, लेकिन पूरे जीवन के लिए बहुत बड़ा है। इन हुसैनों को यह बात समझ में आनी चाहिये कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को अपशब्द कहने, किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की छूट नहीं देती है। पेंटिंग स्वांतःसुखाय बनायी थी तो कमरे में रखते। हम कमरे में बहुत कुछ करते हैं, उसे गाते तो नहीं, बताते तो नहीं, उसकी सार्वजनिक चर्चा तो नहीं करते। यह सरकार का दायित्व भी बनता है कि ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे, जो धार्मिक भावनायें भड़का कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं, वे इसे अपने मार्केटिंग हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी पेंटिंगे महंगी बिकें यह उनकी इच्छा है, यह तभी पूरी होगी, जब वे चर्चा में रहेंगे, यह उनकी रोजी-रोटी है। वे फिल्म जगत से जुड़े रहे, सो फिल्मी प्रचार के हथकंडे की तरह यह सब करते हैं। उनकी मंशा समझने की जरूरत है। क्योंकि यह अभिव्यक्ति किसी सामाजिक सरोकार के लिए नहीं की गयी। पेंटिंग किसी चैरिटी के लिए नहीं बनी। बिकने के लिए बनी। उन्होंने वह बनाया, जो बिके। हमारे देवी-देवता को चित्रित करने से वे चर्चा में आये, बिके। अब धंधा चलाने के लिए किसी की भावना को तो आहत न करो। अनजाने में किया तो खेद तो प्रकट करो। जानबूझ कर किया तो सजा भुगतो। ऐसा जानबूझ कर किया गया है तो यह और ज्यादा गंभीर मामला है। क्या हुसैन साहब को नहीं पता है कि मां सरस्वती को किस रूप में वर्तमान भारतीय समाज मानता और पूजता है? क्या वे इतने अज्ञानी हैं? वे अज्ञानता प्रकट कर दें, तो भी चलेगा, लेकिन वे गलती मानना भी नहीं चाहते, और यह भी चाहते हैं कि उन्हें हम पूजते रहें। यह नहीं चलेगा। आरएसएस और विहिप ने यह मुद्दा उठाया, केवल इसलिए हुसैन को माफ कर दिया जायेगा, उसे सजा नहीं दी जायेगी, यह कौन सा कानून है? दरअसल सरकार की ये हरकतें ही उन लोगों को बढ़ावा दे रही हैं, जो भारत की संप्रभुता पर हमला कर जेल में बिरियानी काट रहे हैं। हम गुनाह साबित होने के बाद भी फांसी नहीं दे रहे हैं, उन्हें। उनका वजन जेल में बढ़ रहा है और उनके वजन के हिसाब से देश में बढ़ रहा है आतंकवाद। आपको लगता होगा कि यह मामला हुसैन की पेंटिंग से कैसे जुड़ा है? जनाब यह है लिटमस टेस्ट जैसा है, किसी मामले पर सरकार कितना दब सकती है, एक पेंटिंग ही बता देती है। उसे वोट चाहिये। पश्चिम बंगाल में वोट के लिए बांग्लादेश से घुसपैठिये बुलाने वाले, उन्हें पालने-पोसने वाले लोग कौन हैं? वहां किनकी सरकार रही है, यह सबको पता है. क्योंकि बांग्लादेश से घुसपैठिये उत्तर प्रदेश औऱ पंजाब के रास्ते नहीं आते, गुजरात के रास्ते नहीं आते। कभी हुसैन बख्श दिये जाते हैं, तो कभी कश्मीर उग्रवादी। यह हुसैन की चुनौती नहीं तो और क्या है, देखो तुम्हारी देवी का नग्न चित्र बना दिया, तुमने क्या कर लिया? यह वैचारिक आतंकवाद नहीं है तो और क्या है? जो बोलेगा उसे सांप्रदायिक कह दिया जायेगा। कहा जायेगा कि शिवसेना, बजरंग दल, विहिप, आरएसएस, हिन्दू महासभा का आदमी है।
मित्रों ये वही लोग हैं जो गोकशी की अनुमति भी मांग रहे हैं। इन्हीं लोगों ने वह रास्ता दिखाया है, जिससे आज गंगा अपवित्र है। इनके शहरीकरण में शहर की गंदगी नदी में बहाने की परंपरा रही है। हमारे यहां नदियों में नाले नहीं खोले जाते थे। दिमाग के सारे तंतु खोलो और इन कड़ियों को जोड़ो. सब समझ में आ जायेगा। किस मंद्र स्वर के अनुनाद से कौन सा धमाका होने जा रहा है।
भीषण भाषण का यह तीसरा अंक कुछ ज्यादा भीषण हो चला है। हुसैन पर गुस्सा बहुत है। गुस्सा इसलिए भी है क्योंकि उनका उद्देश्य अपवित्र है। तथाकथित प्रगतिशील तो जो कुछ हिन्दू धर्म के खिलाफ बोल दिया जायेगा, उसकी ही हिमयात करने लगते हैं। इन्हें रामचरित मानस की दो ही चौपाइयां याद रहती हैं, ये परहित सरसि धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई, इस अर्धाली को नहीं ढूढ़ पाते। इन्हें केवल पूजहिं बिप्र सकल गुण हीना, और ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ही पूरी मानस दिखती है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh